ये लोग न जाने क्यों जहर पीने की बात करते हैं
हम तो सब गम उठाकर भी जीने की बात करते हैं ।
एक नजर काफी है दोस्त-दुश्मन पहचानने के लिए
वो तो नादां हैं, जो साल- महीने की बात करते हैं ।
जख्म देना जिनका पेशा है, महफिलों में अक्सर वो
हमदर्दी की खातिर, जख्मी सीने की बात करते हैं ।
हिन्दू-मुस्लमान हैं सब मगर इन्सां कोई नहीं
कभी काशी, कभी मक्के-मदीने की बात करते हैं ।
गर दगेबाज़ नहीं हैं तो अनजान जरूर होंगे वो
पत्थरों से भरकर दामन, जो नगीने की बात करते हैं ।
मेरी समझ से तो परे है, ये पागल दुनिया वाले
मुहब्बत को छोडकर किस दफीने की बात करते हैं ।
वो लहू और तलवार की बात ले बैठते हैं ' विर्क '
जब भी हम मेहनत और पसीने की बात करते हैं ।
दिलबाग विर्क
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जख्मी सीने --- घायल दिल
दफीने --- जमीन में गड़ा धन
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10 टिप्पणियां:
वो लहू और तलवार की बात ले बैठते हैं ' विर्क '
जब भी हम मेहनत और पसीने की बात करते हैं .
क्या शेर कहे हैं आपने.... बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल है !
हिन्दू-मुस्लमान हैं सब मगर इन्सां कोई नहीं , तभी
कभी काशी , कभी मक्के-मदीने की बात करते हैं ...
बहुत खूबसूरत रचना.. हर पंक्ति लाजवाब..
जख्म देना जिनका पेशा है ,महफिलों में अक्सर वो
हमदर्दी की खातिर , जख्मी सीने की बात करते हैं .
aabhari hoon sundar vichar ke liye aur is sundar rachna ko padhvaane ke liye bhi
एक नजर काफी है दोस्त-दुश्मन पहचानने के लिए
वो तो नादां हैं , जो साल- महीने की बात करते हैं .
bahut achhe
हिन्दू-मुस्लमान हैं सब मगर इन्सां कोई नहीं , तभी
कभी काशी , कभी मक्के-मदीने की बात करते हैं .
मेरी समझ से तो परे है , ये पागल दुनिया वाले
मुहब्बत को छोडकर किस दफीने की बात करते हैं .
बहुत ही गजब की ग़ज़ल कही है....सच में...हर शेर ही दाद के काबिल है...
Vah! behad khubsurat ,sachchi gajal kahi hai..dil se dad kabul kare..shukriya
Vah! behad khubsurat ,sachchi gajal kahi hai..dil se dad kabul kare..shukriya
Vah! kya khub kahi hai , har-ek sher umda hai . lajbab..shukriya
यदि समय हो तो आज का चर्चा मंच भी देख ले!
एक एक शेर ज़बरदस्त है !
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