गगन का चाँद पहलू में बैठाने को
बड़ा बेचैन है दिल तुम्हें पाने को ।
इसे कुछ मालूम नहीं दस्तूर-ए-इश्क
कहे जो , कहने देना इस जमाने को ।
बड़ी पाकीज़ा होती है ये मुहब्बत
क्योंकर शर्तें रखूं मैं आजमाने को ।
इरादा-ए-गुफ्तगू हो जब , देखूं दिल में
सदा की क्या जरूरत , तुझे बुलाने को ।
खुदा दिल का यूं ही नाराज़ मत करना
नाज़ जिंदगी के होते हैं उठाने को ।
चुरा सकते हो अगर ' विर्क ' चुरा लेना
कब कहा जाता चोरी , दिल चुराने को ।
दिलबाग विर्क
* * * * *
सदा ---- आवाज़
* * * * *
4 टिप्पणियां:
खुदा दिल का यूं ही नाराज़ मत करना
नाज़ जिंदगी के होते हैं उठाने को
बहुत अच्छा लिखते हैं आप. अनुसरण करना ही होगा
दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
चुरा सकते हो अगर ' विर्क ' चुरा लेना
कब कहा जाता चोरी , दिल चुराने को .
वाह वाह क्या बात कही है. बहुत बढ़िया शेर. बधाई.
बड़ी पाकीज़ा होती है ये मुहब्बत
क्योंकर शर्तें रखूं मैं आजमाने को .
बहुत सुंदर ग़ज़ल....
dil churana chori nahin kaha jaata ...waah !...behatreen abhivyakti.
एक टिप्पणी भेजें