हो गया हूँ मैं पागल
या पागल हुआ
मेरा अहसास है .
खेला था तू संग मेरे
रह गए तेरे चाव अधूरे
मेरी रूह चली साथ तेरे
पीछे रह गया है जो
वो साया उदास है .
शिकवा किससे करें
तेरे साथ भी कैसे मरें
कैसे हम हौंसला धरें
छूट गई है डोर
न बची कोई आस है .
माना जग नश्वर है
पर ये बात बेअसर है
अपना जाए जब मर है
सजी हुई है महफिल यहाँ
तू न मेरे पास है .
हो गया हूँ मैं पागल
या पागल हुआ
मेरा अहसास है .
* * * * *
चचेरी बहन के निधन पर
पंजाबी से अनुदित ,
मूल रचना ਸੰਦਲੀ ਪੈੜ੍ਹਾਂ पर
13 टिप्पणियां:
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
बेहद मर्मस्पर्शी ......
अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
खूबसूरत रचना.
भावकु करने वाली मर्मस्पर्शी रचना।
शिकवा किससे करें
तेरे साथ भी कैसे मरें
कैसे हम हौंसला धरें
छूट गई है डोर
न बची कोई आस है .
बेहतरीन रचना है आपकी
bahut dil ko choo lene vaali rachna.
मर्म्स्पर्शीय ...आपके दुःख में हम भी शामिल हैं ...
संवेदन शील और मर्म स्पर्शी रचना मन को छू गयी .
शुक्ल भ्रमर ५
माना जग नश्वर है
पर ये बात बेअसर है
अपना जाए जब मर है
सजी हुई है महफिल यहाँ
तू न मेरे पास है .
जीवन की त्रासदी पर मार्मिक भावाभिव्यक्ति....
आपके दुःख में मैं भी शामिल हूं....
अत्यंत मार्मिक रचना .....
मेरी श्रद्धांजलि....
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
श्रद्धांजलि
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