रविवार, जुलाई 10, 2011

गीत



            हो गया हूँ मैं पागल 
            या पागल हुआ 
            मेरा अहसास है .


            खेला था तू संग मेरे 
            रह गए तेरे चाव अधूरे 
            मेरी रूह चली साथ तेरे 
            पीछे रह गया है जो 
            वो साया उदास है .


            शिकवा किससे करें 
            तेरे साथ भी कैसे मरें 
            कैसे हम हौंसला धरें 
            छूट गई है डोर 
            न बची कोई आस है .


            माना जग नश्वर है 
            पर ये बात बेअसर है 
            अपना जाए जब मर है 
            सजी हुई है महफिल यहाँ 
            तू न मेरे पास है .


            हो गया हूँ मैं पागल 
            या पागल हुआ 
            मेरा अहसास है .


              * * * * *
                             चचेरी बहन के निधन पर 
                                       पंजाबी से अनुदित , 
                                       मूल रचना ਸੰਦਲੀ ਪੈੜ੍ਹਾਂ पर 

13 टिप्‍पणियां:

vidhya ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

बेहद मर्मस्पर्शी ......

संजय भास्‍कर ने कहा…

अद्भुत अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

Kunwar Kusumesh ने कहा…

खूबसूरत रचना.

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

भावकु करने वाली मर्मस्पर्शी रचना।

शिकवा किससे करें
तेरे साथ भी कैसे मरें
कैसे हम हौंसला धरें
छूट गई है डोर
न बची कोई आस है .

दीपक जैन ने कहा…

बेहतरीन रचना है आपकी

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut dil ko choo lene vaali rachna.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मर्म्स्पर्शीय ...आपके दुःख में हम भी शामिल हैं ...

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

संवेदन शील और मर्म स्पर्शी रचना मन को छू गयी .
शुक्ल भ्रमर ५
माना जग नश्वर है
पर ये बात बेअसर है
अपना जाए जब मर है
सजी हुई है महफिल यहाँ
तू न मेरे पास है .

Dr Varsha Singh ने कहा…

जीवन की त्रासदी पर मार्मिक भावाभिव्यक्ति....
आपके दुःख में मैं भी शामिल हूं....

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

अत्यंत मार्मिक रचना .....
मेरी श्रद्धांजलि....

Urmi ने कहा…

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!

Udan Tashtari ने कहा…

श्रद्धांजलि

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