हुए थे सूरमा कई , जो खेले थे जान पर
उनके ही प्रताप से , ये देश स्वतंत्र है ।
न हो तानाशाह कोई , जनता का राज रहे
दे संविधान बनाया , इसे गणतन्त्र है ।
अधूरे रहे सपने , जनता लाचार हुई
न रहा ईमान कहीं , भ्रष्ट सारा तन्त्र है ।
बचे नहीं भ्रष्ट कोई , हो न यहाँ कष्ट कोई
देश मेरा जान मेरी , यही एक मन्त्र है ।
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