आरक्षण की मार है , रही देश को मार ।
इक जाति कभी दूसरी , मांगे ये अधिकार ।।
मांगे ये अधिकार , नहीं इसका हल कोई ।
करें हैं तोड़ - फोड़ , व्यर्थ में ताकत खोई ।।
कहे विर्क कविराय , नहीं दिखते शुभ लक्षण ।
हो सुविधा की मांग , न मांगो तुम आरक्षण ।।
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3 टिप्पणियां:
bilkul sahi kaha hai aapne. suvidha ki mang ho aarakshan ki nahin.
बहुत सटीक रही यह कुण्डलिया!
निज स्वार्थ ने अंधा बना रखा है, जिस भेदभाव का ये रोना रोते हैं वह यहाँ इन्हें नजर नहीं आता !
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