गुरुवार, नवंबर 01, 2012

अगजल - 47

जिन्दगी में फैली है कैसी बेनूरी ।
न सुबह सुहानी, न शाम सिन्दूरी ।
चाँद के चेहरे पर दाग क्यों है ?
क्यों है दुनिया की हर शै अधूरी ?

माना ताकतवर है तू बहुत मगर 
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।

जब भी पाओगे भीतर मिलेगी 
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।

तुझसे शिकवा करना खता होगी 
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।

दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर 
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।

**********

11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वाह...।
बहुत खूबसूरत अशआर पेश किए हैं आपने!

हिन्दी हाइगा ने कहा…

दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।

वाह !! सटीक अभिव्यक्ति !!

amrendra "amar" ने कहा…

बेहतरीन खुबसूरत अभिव्यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जब भी पाओगे भीतर मिलेगी
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।

तुझसे शिकवा करना खता होगी
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।

बहुत खूब ... खूबसूरत गज़ल

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!

virendra sharma ने कहा…

बृहस्पतिवार, नवम्बर 01, 2012

अगजल - 47
जिन्दगी में फैली है कैसी बेनूरी ।
न सुबह सुहानी, न शाम सिन्दूरी ।

चाँद के चेहरे पर दाग क्यों है ?
क्यों है दुनिया की हर शै अधूरी ?

माना ताकतवर है तू बहुत मगर
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।

जब भी पाओगे भीतर मिलेगी
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।

तुझसे शिकवा करना खता होगी
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।

दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।



अपना अलग अंदाज़ लाई है ,अ -गज़ल ,

खुश्बू और प्यार लाई है अ -गज़ल .

रस की फुहार लाई है अ -गज़ल .बधाई विर्क साहब इस अंदाज़े बयाँ पर .

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत बढ़िया खूबसूरत अगज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें

Unknown ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति! खूबसूरत अगज़ल

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

माना ताकतवर है तू बहुत मगर
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।

bhut khoob ....!!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखी है अगजल...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

मनोहारी भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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