जिन्दगी में फैली है कैसी बेनूरी ।
न सुबह सुहानी, न शाम सिन्दूरी ।
चाँद के चेहरे पर दाग क्यों है ?
क्यों है दुनिया की हर शै अधूरी ?
माना ताकतवर है तू बहुत मगर
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।
जब भी पाओगे भीतर मिलेगी
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।
तुझसे शिकवा करना खता होगी
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।
दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।
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11 टिप्पणियां:
वाह...।
बहुत खूबसूरत अशआर पेश किए हैं आपने!
दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।
वाह !! सटीक अभिव्यक्ति !!
बेहतरीन खुबसूरत अभिव्यक्ति
जब भी पाओगे भीतर मिलेगी
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।
तुझसे शिकवा करना खता होगी
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।
बहुत खूब ... खूबसूरत गज़ल
करवाचौथ की हार्दिक मंगलकामनाओं के साथ आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (03-11-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
बृहस्पतिवार, नवम्बर 01, 2012
अगजल - 47
जिन्दगी में फैली है कैसी बेनूरी ।
न सुबह सुहानी, न शाम सिन्दूरी ।
चाँद के चेहरे पर दाग क्यों है ?
क्यों है दुनिया की हर शै अधूरी ?
माना ताकतवर है तू बहुत मगर
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।
जब भी पाओगे भीतर मिलेगी
कहाँ ढूँढो खुशियों की कस्तूरी ।
तुझसे शिकवा करना खता होगी
इंसान के हिस्से आई है मजबूरी ।
दुनिया सिमट गई मुट्ठी में मगर
दिलों में ' विर्क ' बढती जाए दूरी ।
अपना अलग अंदाज़ लाई है ,अ -गज़ल ,
खुश्बू और प्यार लाई है अ -गज़ल .
रस की फुहार लाई है अ -गज़ल .बधाई विर्क साहब इस अंदाज़े बयाँ पर .
बहुत बढ़िया खूबसूरत अगज़ल के लिए दिली दाद कबूल करें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति! खूबसूरत अगज़ल
माना ताकतवर है तू बहुत मगर
ठीक नहीं होती इतनी मगरूरी ।
bhut khoob ....!!
बहुत सुन्दर लिखी है अगजल...
मनोहारी भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
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