बुधवार, सितंबर 25, 2013

ये वक्त हुआ है किसका ?

         
         आएगी आफत तू इस डर से न डरा
         हर दर्द लगे है मुझको तो एक दवा ।

         इस मैं ने हमको पकड़ रखा कुछ ऐसे
         हम करते रहते अक्सर तेरा-मेरा ।

         मंदिर-मस्जिद में क्यों ढूँढू मैं उसको
         जब मेरे पहलू में बैठा आज खुदा ।

         ये साजन से मिलकर आया है जैसे
         नाच रहा इस कुदरत का जर्रा-जर्रा ।

        तुम देखो उल्फत में क्या हश्र हुआ है
        मैं सुधरा, टूटा, बिखरा या फिर बहका ।

       तेरा न हुआ तो क्यों गम में डूबा है
       'विर्क' सुनो तो, ये वक्त हुआ है किसका ?
                        *********

2 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

तेरा न हुआ तो क्यों गम में डूबा है
'विर्क' सुनो तो, ये वक्त हुआ है किसका ?
बहुत सुन्दर
नई पोस्ट साधू या शैतान
latest post कानून और दंड


virendra sharma ने कहा…

ये साजन से मिलकर आया है जैसे
नाच रहा इस कुदरत का जर्रा-जर्रा ।

तेरा न हुआ तो क्यों गम में डूबा है
'विर्क' सुनो तो, ये वक्त हुआ है किसका ?

बहुत सशक्त अभिव्यक्ति अर्थ विस्फोट हुआ हैं यहाँ पर

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