सीख ले धूप की तल्खियाँ झेलना
उम्र भर कब रहा साथ साया घना ।
बन बवंडर गई देखते - देखते
आग से तेज है बात का फैलना ।
दाद देना उसे, कर सका जो मना ।
हार हिस्सा रहेगी सदा खेल का
जीत की चाह रखकर भले खेलना ।
तंग है सोच, दिखती नहीं खूबियाँ
आदतन वो करे सिर्फ आलोचना ।
देखने का तरीका बदल तो सही
खूबसूरत दिखेगा जहां, देखना ।
तोड़ दो , अब जरूरत नहीं जाम की
बिन पिए आ गया ' विर्क ' गम ठेलना ।
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
हार हिस्सा रहेगा सदा खेल का
जीत की चाह रखकर भले खेलना ।
तंग है सोच, दिखती नहीं खूबियाँ
आदतन वो करे सिर्फ आलोचना ।
क्या बात कही है। बहुत खूबसूरत।
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