शुक्रवार, अक्टूबर 25, 2013

फिर याद आया राम है

सुन मुहब्बत दे रही पैगाम है
प्यार ही सबसे नशीला जाम है ।

दिन चुनावों के लगें नजदीक ही

भूल जाते लोग दो दिन बाद ही
सोच ये, हमने कमाया नाम है ।

बिक रहा हर आदमी इस देश का
था नगीना पर बड़ा कम दाम है ।

यूँ खड़े हैं साथ मेरे यार सब
जब जरूरत, कौन आया काम है ।

आबरू के उड़ रहे हैं परखचे
हो रहा अब ये तमाशा आम है ।

' विर्क ' अब हम जी रहे किस दौर में
ये शराफत भी बनी इल्जाम है ।
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6 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सटीक रचना
नई पोस्ट हम-तुम अकेले

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

मत पाने के वास्ते, होने लगे जुगाड़।
बहलाने फिर आ गये, मुद्दों की ले आड़।

बेनामी ने कहा…

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Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर

Anuradha chauhan ने कहा…

बहुत सुंदर रचना

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

' विर्क ' अब हम जी रहे किस दौर में
ये शराफत भी बनी इल्जाम है ।

सही कहा। सुन्दर ग़ज़ल।

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