सुन मुहब्बत दे रही पैगाम है
प्यार ही सबसे नशीला जाम है ।
दिन चुनावों के लगें नजदीक ही
देख लो फिर याद आया राम है ।
भूल जाते लोग दो दिन बाद ही
सोच ये, हमने कमाया नाम है ।
बिक रहा हर आदमी इस देश का
था नगीना पर बड़ा कम दाम है ।
यूँ खड़े हैं साथ मेरे यार सब
जब जरूरत, कौन आया काम है ।
आबरू के उड़ रहे हैं परखचे
हो रहा अब ये तमाशा आम है ।
' विर्क ' अब हम जी रहे किस दौर में
ये शराफत भी बनी इल्जाम है ।
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6 टिप्पणियां:
बहुत सटीक रचना
नई पोस्ट हम-तुम अकेले
मत पाने के वास्ते, होने लगे जुगाड़।
बहलाने फिर आ गये, मुद्दों की ले आड़।
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बहुत सुन्दर
बहुत सुंदर रचना
' विर्क ' अब हम जी रहे किस दौर में
ये शराफत भी बनी इल्जाम है ।
सही कहा। सुन्दर ग़ज़ल।
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