पता नहीं इस खेल में क्या पाउँगा
मगर मुहब्बत में किस्मत आजमाऊँगा
तिनका हूँ तिनके की औकात न पूछ
हवा चली तो न जाने किधर जाऊँगा ।
आना-न-आना तुम्हारी मर्जी होगी
कल भी बुलाया था, कल फिर बुलाऊँगा ।
लोगों के हँसने से भी क्या होना है
फिर भी हो सका तो जख़्म छुपाऊँगा ।
समेटना ही होगा ग़म आगोश में
प्यार रुसवा होगा अगर अश्क़ बहाऊँगा ।
वफ़ा की सलीब ' विर्क ' कंधों पर होगी
जब भी लौटकर तेरे शहर आऊँगा ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - काव्य गौरव
संपादक - मोहन कुमार
प्रकाशन - आकृति प्रकाशन , पीलीभीत ( उ. प्र. )
प्रकाशन वर्ष - 2007
3 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा !
रब का इशारा
बेहतरीन।
धन्यवाद।
बहुत सुंदर--प्यार-पीडा-प्रतीक्षा
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