इश्क़ बताए, होती है बुत्तपरस्ती क्या
दीवानापन क्या, दीवानों की हस्ती क्या ।
गीत मुहब्बत के धड़कें न जहाँ साँसों में
उस बस्ती को कहना आदम की बस्ती क्या ।
गहरे उतरो, जो पाना चाहो तुम मोती
चिंता क्यों, ये बाज़ी महँगी क्या, सस्ती क्या ।
कुछ न मिलेगा तुझको ' विर्क ' अधूरेपन से
जब तक भूल न जाएँ खुद को, वो मस्ती क्या ।
दिलबाग विर्क
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन अभिवयक्ति.....
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