कुछ आदत थी, कुछ मजबूरी है
खामोशी मेरे लिए जरूरी है ।
उम्मीदें टूटती हैं यहाँ अक्सर
ख्बाव होंगे सच, उम्मीद पूरी है ।
बिक रहा है वो कौड़ियों के मोल
आदमी की चमक तो कोहेनूरी है ।
रिश्तों में कुछ फर्क नहीं पड़ता
धरती - चाँद में कितनी दूरी है ।
देर - सवेर नुक्सान उठाएगा
वो शख्स, जिसमें मगरूरी है ।
मंजिल ' विर्क ' दूर रही है मुझसे
शायद मेरी चाहत अधूरी है ।
दिलबाग विर्क
खामोशी मेरे लिए जरूरी है ।
उम्मीदें टूटती हैं यहाँ अक्सर
ख्बाव होंगे सच, उम्मीद पूरी है ।
बिक रहा है वो कौड़ियों के मोल
आदमी की चमक तो कोहेनूरी है ।
रिश्तों में कुछ फर्क नहीं पड़ता
धरती - चाँद में कितनी दूरी है ।
देर - सवेर नुक्सान उठाएगा
वो शख्स, जिसमें मगरूरी है ।
मंजिल ' विर्क ' दूर रही है मुझसे
शायद मेरी चाहत अधूरी है ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - विदुषी
संपादक - रविन्द्र शर्मा
प्रकाशन - रवि प्रकाशन, बिजनौर
प्रकाशन वर्ष - 2008
5 टिप्पणियां:
शानदार लाज़वाब अशआर ज़नाब के।
हर शेर बेहतरीन ! बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल !
behtreen :)
bahut badhiya ...
बहुत ही खूबसूरत गजल।
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