कोई अजूबा तो नहीं, न हो बेमतलब हैरान
इश्क़ के सिर पर होता है हिज्र का आसमान ।
पहलू में बैठा हो महबूब और फ़ुर्सत भी हो
कभी-कभार होती है ज़िंदगी इतनी मेहरबान ।
शायद ख़ुदा देखना चाहता है हौंसला मेरा
ख़ुशियों के दरवाजे पर मिले ग़म का दरवान ।
तन्हाई को मेरे पास फटकने ही नहीं दिया
किया तेरी याद ने मुझ पर कितना बड़ा अहसान ।
किसी मुजरिम की तरह कटघरे में खड़े रहे
और हमारी किस्मत हमें सुनाती रही फ़रमान ।
फ़रेब हैं यहाँ का हुनर, फ़रेब ही यहाँ का दस्तूर
तुम भी सजा लेना ' विर्क ' कोई फ़रेब की दुकान ।
दिलबाग विर्क
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज्बात " से
3 टिप्पणियां:
फ़रेब हैं यहाँ का हुनर, फ़रेब ही यहाँ का दस्तूर
तुम भी सजा लेना ' विर्क ' कोई फ़रेब की दुकान ।
ठीक कहा जनाब
वाह जनाब बहुत खूबसूरत...दाद ...वसूल पाइयेगा !!
बहुत बढ़िया
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