कारण
जब भी कभी
जिक्र होता है महाभारत का
उँगलियाँ उठ ही जाती हैं
धृतराष्ट्र के पुत्र प्रेम की तरफ ,
लेकिन
इस युद्ध के लिए
क्या उचित होगा
इसे ही एकमात्र कारण मानना ?
क्या युद्ध
परिणाम होते हैं
सिर्फ एक कारण का ?
नहीं ,
इसके लिए
जरूरी होता है
जरूरी होता है
कारणों की श्रृंखला का होना
और इसकी घातकता
निर्भर करती है
इस श्रृंखला की लम्बाई पर
इसलिए बड़े कारण तो
प्रत्यक्ष होते हुए भी
महत्त्वहीन हो जाते हैं
और महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं
छोटे-छोटे
अगणित
परोक्ष कारण .
इन कारणों में
दुर्योधन का
वह शक भी होता है
जिसके परिणामस्वरूप
हमें लगता है कि
हनन हो रहा है
हमारे अधिकारों का
और पांचाली की
वह मनोवृति भी होती है
जिसके अंतर्गत
हम अपनी जीत समझते हैं
किसी के मर्म पर
प्रहार करने को .
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