सोमवार, अप्रैल 04, 2011

अगज़ल - 15

करके प्यार ख़ुशी के लिए दुआ न करना 
गले लगा लेना , गम को खफा न करना । 

हमदर्दी की मरहम , बन जाती है नश्तर 
इश्क के जख्मों पर कभी दवा न करना । 
मुबारिक कहना हर ढलती हुई शाम को 
अंधेरों के लिए किस्मत से गिला न करना । 

जुदाई  में  तुम चूम  लेना  तन्हाइयों  को 
प्यार भरी यादों को मगर तन्हा न करना । 

यादों की आग में मिटा देना हस्ती अपनी 
जीने के लिए बेवफाई से वफा न करना । 

जिसे दिल दिया हो गर वो पत्थर भी निकले 
तो ' विर्क ' उस पत्थर से भी दगा न करना । 

दिलबाग विर्क 
* * * * *

6 टिप्‍पणियां:

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

बहुत सुन्दर,

अगजल कोई नई विधा है क्या?

क्या आप एक से ज्यादा ब्लॉग पर एक ही लेख लिखते हैं ?
सामूहिक ब्लॉग संचालकों के लिए विशेष

दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

aadrniy yogenderpal ji
nmaskar
मेरे हिसाब से अगज़ल एक गज़लनुमा रचना है , यह ग़ज़ल नहीं है क्योंकि यह ग़ज़ल के बहर पर खरी नहीं उतरती लेकिन इसमें काफिया और रदीफ़ ग़ज़ल की तरह है .
बहुत से लोग ऐसी ही रचना को ग़ज़ल कहकर लिख रहे हैं , काव्य शास्त्रियों को एतराज़ न हो इसलिए मैं इसे अगज़ल कहता हूँ , वैसे अगज़ल को अकविता, अगीत ,अकहानी की तरह आजमाया गया है ,लेकिन कुछ ज्यादा खुलेपन के कारण अगज़ल विधा नाममात्र को ही अप्रचलित है , मैं इसे ब्लॉग के जरिए प्रचलित करना चाहता हूँ और मेरी तरह लिखने वालों से मैं तो यही कहूँगा अगर उनकी रचना ग़ज़ल के नियमों पर खरी नहीं उतरती तो वे अगज़ल शीर्षक से ही लिखें .

Dr. Yogendra Pal ने कहा…

अब समझा, मैंने उन लेखकों को टारगेट करते हुए एक लेख लिखा है जो एक ही लेख को कई जगह लिखते हैं,

उम्मीद है आपको फायदा होगा

क्या आप एक से ज्यादा ब्लॉग पर एक ही लेख लिखते हैं ?

केवल राम ने कहा…

जुदाई में चूम लेना तन्हाइयों को
प्यार भरी यादों को मगर तन्हा न करना .

बहुत सुन्दरता से भावों को अभिव्यक्त किया है ..इस गजल के माध्यम से ..आपका आभार

ZEAL ने कहा…

जिसे दिल दिया हो गर वो पत्थर भी निकले
तो ' विर्क ' उस पत्थर से भी दगा न करना ...

Beautiful creation . Enjoyed reading. Thanks Virk ji.

.

Amrita Tanmay ने कहा…

Har kafiya kahin vaar karti hui...bahut achchha likha hai..

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