नियति, नियति, नियति
कितनी जालिम है यह नियति
जो बाँट देती है
हर इंसान के दिल को
दो टुकड़ों में
और बना देती है
मैदान अंतर्द्वंद्व का ।
कोई कायर हो या वीर
शूद्र हो या क्षत्रिय शूरवीर
सबको डसती ही आई है यह
सदियों से ।
इस नियति ने
डसा था उसको भी
जो क्षत्रिय भी था
और शूद्र भी
जो शूरवीर भी था
और दानवीर भी
लेकिन न तो उसकी शूरवीरता
और न ही उसकी दानवीरता
बचा पाई उसे
इस क्रूर नियति के बाहुपाश से ।
वह आज खड़ा है
इसकी लपेट में
आज ही क्या
बचपन से
या यूं कहें कि
जन्म के पहले से ही
वह इसकी लपेट में है ।
नियति ही उसकी माता है
नियति ही उसका पिता है
और इसी नियति ने
उसके जीवन को डसा है ।
उसकी नियति के कारण ही
कुंती ने
सूर्य का स्मरण किया था
इस नियति के कारण ही
इंद्र ने ब्राह्मण बनकर
उसे ठगा था ।
( क्रमश: )
* * * * *
13 टिप्पणियां:
नियति को केंद्र में रख व्यक्त सुंदर कथ्य
अच्छी शुरूआत है ..
अगली कडी का इंतजार रहेगा !!
सच है नियति से कोई नहीं बचा है ..कर्ण जैसा शूरवीर भी नहीं .. अच्छी प्रस्तुति
नियति के माध्यम से अद्भुत रचना तर्कों में बढ़ी हुई ....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!
अद्भुत रचना.
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 07-11-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुंदर कविता. अगली कड़ी का भी इन्तेज़ार रहेगा.
बधाई और शुक्रिया.
बहुत अच्छी शुरूआत...बधाई|
niyati ke jaal se koi nahi bach paya...bahut sundar rachna...agli kadi ka intjaar rahega.
सही कहा आपने नियति के कारण हि ठगा गया था कर्ण!
bahut sahi samikran kiya hai aapne...
नियति को ध्यान में रख कर कर्ण को चुना आपने,... आभार बहुत सुंदर रचना
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