कर्ण का दिल
आज एक तराजू बना हुआ है
जिसके एक पलड़े में
कौरव दल तो
दूसरे पलड़े में
पाण्डव दल तुला हुआ है ।
कौरव दल ने
उसके सिर पर
दोस्ती की छाया की है
यह दोस्ती आज की नहीं
अपितु
उस वक्त की है
जब वह गलियों का पत्थर था
आज यदि
वह महल का कंगूरा है तो
इसी दोस्ती की बदौलत
जबकि पांडव दल में
मातृत्व का आंचल है
उसका वह अपनापन है
जिसने उसको
जिसे वास्तव में ही
महल का कंगूरा होना चाहिए था
गलियों का पत्थर बनाया ।
इतना सोचते ही
भारी हो जाता है
कौरवों का पलड़ा
लेकिन तब तक
जब तक वह
तर्क नहीं सुनता अपने दिल के
वास्तव में वह
अब चाहता भी नहीं
इन्हें सुनना
लेकिन उसका दिल
बार-बार सुनाता है उसे
और जिन्हें भुलाने की तमन्ना है
उन्हीं बातों की तस्वीर
ले आता है उसके सामने ।
कर्ण सोचने को विवश है
कौन जिम्मेदार है
उसकी इस दशा के लिए
क्या वो कुंती
जो उसकी माता है
या फिर वो सूर्य
जो उसका पिता है
या वह स्वयं
जिसने पकड़ा है
दुर्योधन की दोस्ती वाला हाथ
या फिर वह वासुदेव कृष्ण
जिसने उसके सामने
उसका इतिहास खोला है
प्रश्न अनेक हैं
और उत्तर
सिर्फ शून्य है
एक घुटन है
एक अंधकार है जिसमें
सूर्य-पुत्र डूब रहा है ।
( क्रमश: )
* * * * *
9 टिप्पणियां:
poori katha ko kavita me goonth diya aapne.bahut sundar
कर्ण की कश्मकश को बखूबी शब्द दिए हैं ... अच्छी प्रस्तुति
प्रश्न अनेक हैं
और उत्तर
सिर्फ शून्य है
एक ज़बरदस्त अंतर्द्वंद दर्शाती अभिव्यक्ति.
कर्ण का चरित्र,मोहित करता है,जीवन की विडंबनाओं के साथ,जिसे आपने कविता के माध्यम से
बखूबी निखारा है.
प्रश्न अनेक हैं
और उत्तर
सिर्फ शून्य है
निर्णय न ले पाने की विडंबना...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति|
कर्ण के मन की कशमकश को दर्शाती ये रचना .....
अगले भाग के इंतज़ार में .......आभार
कर्ण की अन्तर्दशा को बहुत मार्मिक चित्रण किया है।
प्रश्न अनेक हैं
और उत्तर
सिर्फ शून्य है
एक घुटन है
एक अंधकार है जिसमें
सूर्य-पुत्र डूब रहा है ।
bahut kashamkash bhar,bhavpoorn prastuti...
sundar shrinkhla..
मार्मिक चित्रण ....
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