बुधवार, अप्रैल 24, 2013

अगज़ल - 55

उम्र भर के रिश्ते न तोड़ डालना गलतफहमी से 
आदमी को जरूरत पडती ही रहती है आदमी से ।

उसके लबों पर हंसी लाना फर्ज है तुम्हारा,  अगर 
जाने-अनजाने दिल दुखा है किसी का, तुम्हारी कमी से ।

मासूमियत पर पहले ही लोगों को ऐतबार नहीं 
रहजन बनके लूटो, मगर न लूटो आँखों की नमी से ।

जमाने के गमों से वाकिफ हो जाता है वो शख्स 
खुशियाँ रहें जिससे दूर, नाता हो जिसका गमी से ।

हवा के झोंकों के साथ रुख बदल लेते हैं ये 
इस जमाने में आजकल, मिलते हैं लोग मौसमी से ।

किसी मुर्शिद की रहमत हो जाए विर्क तो क्या कहना 
यूं तो वक्त भी तराशे है, मगर बड़ी बेरहमी से ।

                           दिलबाग विर्क 
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रहजन ---- लुटेरे 
मुर्शिद ---- गुरु 
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