मंगलवार, मई 28, 2013

अग़ज़ल - 58

           हमें भी उम्मीद का एक आशियां बनाने दो 
           कांटो भरी बेल पर कोई फूल खिलाने दो ।

           क्या हुआ गर बिखेर दिए हैं तिनके किस्मत ने 
           दूर जा  चुकें हैं जो , उनको पास बुलाने दो ।

           गर दम हुआ वफा में तो छंटेगा अँधेरा भी 
           रौशनी के लिए अपने दिल को जलाने दो ।

           मुहब्बत का चिराग जले उम्र भर इसके लिए 
           तूफानों को अपने आगोश में सुलाने दो ।

           उनकी बेवफाई कहीं ले न जाए उन्हें गर्त में 
           बेगाने बने हैं जो, उन अपनों को बचाने दो ।

           चंद रोज की जिन्दगी काफी है विर्क मेरे लिए 
           किसी की ख़ुशी के लिए खूने-जिगर बहाने दो ।

                          दिलबाग विर्क 
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बुधवार, मई 22, 2013

दिल की धरा



जो दे सके साया, ऐसा कोई दरख्त ही नहीं 
गम के आफताब से झुलस रही है दिल की धरा

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मंगलवार, मई 21, 2013

सपनों की उड़ान



तब बे ' मानी हो जाती है सपनों की उड़ान
जब इनका जमीं से कोई वास्ता नहीं होता । 

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सोमवार, मई 20, 2013

जिद्द



हम बड़े हैं, झुकना नहीं झुकाना है काम हमारा
इस जिद्द के चलते दिन-ब-दिन छोटे होते चले गए ।

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रविवार, मई 19, 2013

दिल



सब जख्मों को भर जाना होता है, यही सोच थी मेरी
अब गलती का हो रहा है अहसास इस दिल को देखकर । 

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शुक्रवार, मई 17, 2013

सूरत



कुछ समझ न आए क्या राज है इसका, किसकी खता है
क्यों आदमी की सूरत उसकी सीरत से मेल नहीं खाती ? 

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गुरुवार, मई 16, 2013

नजरें



तकरार के उन पलों में अगर सोचकर बोला होता
अब सुलह के इस दौर में नजरें यूँ झुकी न होती ।

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मंगलवार, मई 14, 2013

शम्अ का हुनर



परवानों को भी खबर है, यहाँ जिंदगी नहीं मिलती
ये तो शम्अ का हुनर कि वे जलने चले आते हैं ।

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अग़ज़ल - 57

भले मय पिला दे या फिर पिला दे जहर साकी 
मगर मेरी मुहब्बत को रुसवा न कर साकी ।

पहले उसे देखता था, अब खुद को सोचता हूँ 
उस वस्ल से तो कहीं बढ़कर है ये हिज्र साकी ।

रुका हूँ इसलिए कि तरोताजा होकर चल सकूं 
अभी मुकाम कहाँ, बड़ा लम्बा है सफर साकी ।

घर के ही लोग घर को मकान बना देते हैं 
वरना कौन होना चाहता है बेघर साकी ।

जिन्दगी का स्याह रुख देखा हो जिसने, उसके 
दिल के किसी कोने में बैठा ही रहे डर साकी ।

गर विर्क जिन्दगी ही नशा बने तो उम्र गुजरे 
तेरी मय का नशा तो जाना है उतर साकी ।

                     दिलबाग विर्क                                                       
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शुक्रवार, मई 10, 2013

अपनों के शहर में



कोई मुझसे, किसी से मैं मुँह छुपा रहा हूँ
लो मैं फिर आ गया हूँ अपनों के शहर में ।

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बुधवार, मई 08, 2013

गम की दोपहरी


तुम कब घटा बनकर छाओगे दोस्त
गम की दोपहरी में जल रहे हैं हम ।

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सोमवार, मई 06, 2013

सुलगती राख



ये माना, चिंगारियों के भड़कने का दुख है तुम्हें
मगर सोचो सुलगती राख को हवा तुम्हीं ने दी थी ।

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शनिवार, मई 04, 2013

तेरी याद



बड़े दिनों के बाद आज चहका था दिल
तेरी याद ने फिर सिल दिए होंठ मेरे ।

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गुरुवार, मई 02, 2013

रेत से रिश्ते



उम्र निकली तो समझे, खुले हाथ रखो इन्हें
ये  रेत  से  रिश्ते,  मुट्ठी  में  रहते  कब  हैं ।

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