इस देश महान का, हुआ है ये हाल
कहीं पर है दंगा, कहीं पर हड़ताल ।
रोशनी की बजाए घर जलाने लगा
जिसके भी हाथों दी हमने मशाल ।
मुद्दों का कभी कोई हल नहीं निकला
आयोग बैठे , हुई जाँच-पड़ताल ।
शर्मो-हया का जिक्र क्यों करते हो
सफेद हो गया है, लहू न रहा लाल ।
तमाशा बन गया है ये पूरा मुल्क
होते हैं यहाँ हर रोज कुछ नए कमाल ।
वफ़ा की जगह ' विर्क ' बेवफाई आ गई
कल भी थे, हम आज भी हैं बेमिसाल ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - विदुषी
संपादक - रविन्द्र शर्मा
प्रकाशन - रवि प्रकाशन, बिजनौर
प्रकाशन वर्ष - 2008
2 टिप्पणियां:
बहुत खूब,बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
आज के हालात पर सुन्दर रचना, बधाई.
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