माना तुझे अब मुझसे उल्फ़त नहीं
फिर भी मैं कर सकता नफ़रत नहीं ।
तेरा चेहरा खिला रहे सदा ही
इसके सिवा कोई भी हसरत नहीं ।
बदले में माँगे तुझसे क़ीमत
इतनी हल्की मेरी चाहत नहीं ।
बेहतर है, खुद ही संभलकर रहें
लोगों को किसी की मुरव्वत नहीं ।
तेरे ग़म में इतना उलझा हूँ मैं
तुझे सोचने तक की फ़ुर्सत नहीं ।
मेरी वफ़ा ' विर्क ' मेरा साथ छोड़े
होगी इससे बढ़कर क़यामत नहीं ।
दिलबाग विर्क
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मेरे और कृष्ण कायत जी द्वारा संपादित पुस्तक " सतरंगे जज़्बात " से
6 टिप्पणियां:
तेरे ग़म में इतना उलझा हूँ मैं
तुझे सोचने तक की फ़ुर्सत नहीं ।
शानदार
बहुत सुंदर
बदले में माँगे तुझसे क़ीमत
इतनी हल्की मेरी चाहत नहीं ।
..वाह! बहुत सुन्दर
वह प्यार ही क्या जिसमें हल्कापन हो ...
क्या बात है..बहुत खूब लिखा आपने
बेहतरीन शेर ।
बेहतरीन शेर ।
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