अब मुश्किल नहीं लगता मुझको घुट-घुटकर जीना
मेरी आदतों में शुमार हो गया है, ये आँसू पीना ।
एक कसक और चंद हसीं यादें मेरे पास छोड़कर
देखते-देखते हाथों से निकल गया वक़्त ज़रीना।
बुलंद हौसले कुछ नहीं करते गर कोई अपना न हो
मौजों से दोस्ती क्या करेगी, जब दुश्मन हो सफ़ीना।
शायद इसीलिए लोग ज़माने के हैं नफ़रतपसंद
नफ़रत तो है फ़िज़ा में और मुहब्बत है दफ़ीना ।
दौलतमंद होने के लिए तैयार हैं लहू बहाने को
मगर कोई भी शख़्स नहीं चाहता बहाना पसीना।
फ़र्क़ इसमें कुछ भी नहीं और बहुत ज्यादा भी है
कोई कहे दिल पत्थर ‘विर्क’, कोई कहे दिल नगीना।
दिलबागसिंह विर्क
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दिलबागसिंह विर्क
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1 टिप्पणी:
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, स्वामी विवेकानंद जी की ११६ वीं पुण्यतिथि “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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