कैसी मुहब्बत , कैसा प्यार
आदमी जिंस , दुनिया बाज़ार ।
चुप का ताला लगा लो मुंह पर
बोलने के हैं यहाँ दुःख हजार ।
भला कैसे निभे दोस्ती जब
बेबात ही हो जाए तकरार ।
हर चीज़ की हद होती है
कब तक करे कोई इंतजार ।
परेशानियाँ पीछा छोड़ें नहीं
पतझड़ हो , चाहे हो बहार ।
ख़ुशी तो ' विर्क ', है सुहाना ख्वाब
जैसे भी हो , ये वक्त गुज़ार ।
दिलबाग विर्क
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