विवशता
बड़ी देर से
इंतजार था कुत्ते को
रोटी के टुकड़े का
और जैसे ही
इंतजार समाप्त होने को आया
घट गई एक अनोखी घटना
मालिक के
रोटी फैंकते ही
एक कौआ
न जाने कहाँ से
उतरा जमीन पर
झट से रोटी को
दबाकर चोंच में
उड़ गया फुर्र से
कुत्ता बेतहाशा उसके पीछे दौड़ा
मगर उसकी दौड़-धूप भी
कोई रंग न लाई
हारकर
थककर
टूटकर
एक मजदूर की भाँति
विवश-सा होकर
वह बैठ गया
और उससे थोड़ी दूरी पर
वह कौआ
पेड़ की शाख पर
ऐसे ही बैठा था जैसे
बैठा हो
मिल मालिक कोई .
*****
बड़ी देर से
इंतजार था कुत्ते को
रोटी के टुकड़े का
और जैसे ही
इंतजार समाप्त होने को आया
घट गई एक अनोखी घटना
मालिक के
रोटी फैंकते ही
एक कौआ
न जाने कहाँ से
उतरा जमीन पर
झट से रोटी को
दबाकर चोंच में
उड़ गया फुर्र से
कुत्ता बेतहाशा उसके पीछे दौड़ा
मगर उसकी दौड़-धूप भी
कोई रंग न लाई
हारकर
थककर
टूटकर
एक मजदूर की भाँति
विवश-सा होकर
वह बैठ गया
और उससे थोड़ी दूरी पर
वह कौआ
पेड़ की शाख पर
ऐसे ही बैठा था जैसे
बैठा हो
मिल मालिक कोई .
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4 टिप्पणियां:
एक मजदूर की भाँति
विवश-सा होकर
वह बैठ गया............
सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत मार्मिक रचना , बधाई!
लोहड़ी, पोंगल एवं मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं!
इंसान हो या जानवर , आपकी रचना ने ' विवशता ' का बेहतरीन चित्रण किया है।
बहुत अच्छी लगी आपकी कविता। विवशता का बेहतरीन चित्रण किया है आपने।
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
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