मंगलवार, दिसंबर 13, 2011

अग़ज़ल - 30


           इस नाचीज़ को, क्या इतना बताएगा तू
           खुदा  मेरे  कितना  क़हर  बरपाएगा  तू ।

           मुझे  ख़बर  है  मेरी  लापरवाहियों  से
           उम्मीदों  के  तिनकों  को  जलाएगा  तू ।
           तूने  दिया  दर्द  कितना  मैं  जानता  हूँ 
           बीते  हुए  लम्हें  बहुत  याद  आएगा  तू ।

           तुझे भुला सकूं इतनी मेरी हिम्मत नहीं 
           ये  तो  मालूम  है  मुझे   भुलाएगा  तू ।

           ऐ दिल मेरे अब नादानियाँ छोड़ भी दे 
           कब तक हमें यहाँ रुसवा करवाएगा तू ।

           चलो दिल पर छाई गुबार उतर जाएगी 
           शुक्रिया ' विर्क ' अगर हमें रुलाएगा तू ।

                           * * * * *

7 टिप्‍पणियां:

kanu..... ने कहा…

bahut hi sundar gazal..ya kahiye to agazal...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बेहतरीन गज़ल ...

Vandana Ramasingh ने कहा…

तुझे भुला सकूं इतनी मेरी हिम्मत नहीं
ये तो मालूम है मुझे भुलाएगा तू ।
बढ़िया गज़ल

Urmi ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत और लाजवाब ग़ज़ल लिखा है आपने ! बधाई!

News And Insights ने कहा…

तूने दिया दर्द कितना मैं जानता हूँ
बीते हुए लम्हें बहुत याद आएगा तू ।

आपकी लेखनी का तो मैं दीवाना हो गया दिलबाग जी ..अतिसुन्दर

संजय भास्‍कर ने कहा…

शब्द शब्द ख़ूबसूरत ..... उत्तम ग़ज़ल के लिए बधाई.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

सीधे सपाट शब्दों में गज़ल कहने का यह अंदाज बहुत ही पसंद आया.

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