अपाहिज कोई
जिस्म से नहीं होता
सोच से होता है
जो सोच से अपाहिज है
वह स्वस्थ होते हुए भी
हार जाता है ज़िन्दगी से
और जो
सोच से अपाहिज नहीं
वह अपाहिज होते हुए भी
धत्ता बता देता है
हर मुश्किल को
और सफलता
कदम चूमती है उसके ।
* * * * * *
5 टिप्पणियां:
बढ़िया सोच
आपकी कविता पढ़कर किसी का एक प्यारा-सा शेर याद आ गया.शेर है:-
अरे पर्वत तू कल तक जिसकी लाचारी पे हँसता था,
तेरी चोटी पे बैठा है वही बैसाखियाँ लेकर .
ख़ूबसूरत शब्दों से सुसज्जित उम्दा रचना के लिए बधाई!
क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !
मेरे नये पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
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बहुत सुन्दर ... जिस दिन सोच अपाहिज हो गयी तो सच खुद अपाहिज हो जाते हैं ...
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