तालियों की गड़गड़ाहट
और
पेट की भूख
कर देती है मजबूर
मौत के मुंह में उतरने को
यह जानते हुए कि
यह वीरता नहीं
मूर्खता है ।
बाजीगिरी
कोई चुनता नहीं शौक से
यह मुकद्दर है
गरीब समाज का
और इस मुकद्दर को
कला बनाकर जीना
जिन्दादिली है
और यह जिन्दादिली
जरूरी है क्योंकि
जिन्दगी जीनी ही पड़ती है
चाहे रो के जियो
चाहे हँस के जियो
चाहे डर के जियो
चाहे जिन्दादिली से जियो ।
* * * * *
13 टिप्पणियां:
बहुत खूब...जिंदगी जीना भी एक कला है ...
बहुत सुन्दर और प्रेरक रचना!
बहुत खूब.प्रेरक रचना!
प्रेरक रचना!.. बहुत खूब.
वाह ...बेहतरीन प्रस्तुति ।
बेजोड़ भावाभियक्ति....
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ सच में शुरुआत तो ऐसे ही हो जाती है ...लेकिन निभाते हुए जीते रहना जिन्दादिली है ही
भ्रमर ५
प्रिय दिलबाग जी आप की ये रचना हमारे ब्लॉग प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच पर भी पोस्ट की जा रही है
यह मुकद्दर है
गरीब समाज का
और इस मुकद्दर को
कला बनाकर जीना
जिन्दादिली है
एक और शानदार
और
प्रभावी प्रस्तुति ||
बधाई ||
अपने पे हँस के जग को हँसाया
बनके तमाशा दुनियाँ में आया.
बाजीगिरी
कोई चुनता नहीं शौक से....
lovely !
.
सुन्दर प्रस्तुति
वाह
चाहे रो के जियो
चाहे हँस के जियो
चाहे डर के जियो
चाहे जिन्दादिली से जियो ।
प्रेरक संदेश देती बहुत सुंदर रचना...
नववर्ष की मंगलकामनाएं !!!
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