षटपदीय छंद - 2
अभिशाप न बनाएँ इसे ,विज्ञान है वरदान
इंसान के लिए इसने , किए हैं कार्य महान .
किए हैं कार्य महान , दिखाई उन्नति की राह
चाँद पर पहुंचने की , पूरी हुई है चाह .
फल मिलता है तभी , सोच रहे जब निष्पाप
कहता 'विर्क ' सबसे , विज्ञान नहीं है अभिशाप .
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1 टिप्पणी:
सॉरी!
इससे पूर्व की टिप्पणी में वर्तनी की त्रुटियाँ हो गईं थीं-
कुण्डलिया को देख कर, मन में जगी उमंग।
लिखने के अन्दाज़ ने, किया रंग में भंग।।
किया रंग में भंग, छन्द नहीं गेय बने हैं।
गति-यति और विराम, हुए निष्प्राण घने हैं।।
कह मयंक कविराय, सजाओ दोहावलिया।
खुश हो करके लोग, पढ़ेंगे तब कुण्डलिया।।
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