सोमवार, जनवरी 24, 2011

कविता - 3

                       मैं भारत हूँ             

             ऐ भारतवासियो
             मैं भारत हूँ 
             वो भारत 
             जिसे खंड-खंड कर डाला है 
             तुम लोगों ने 
             बाँट दिया है मुझको 
             कभी जाति के नाम पर 
             कभी धर्म के नाम पर 
             कभी भाषा के नाम पर  .
             कश्मीर से कन्याकुमारी तक 
             तुम लोगों ने 
             जख्म ही जख्म दिए हैं मुझको
             मेरे हितैषी कहलाने वालो
             मैं बंटना नहीं चाहता 
             मुझे बाँटने की इच्छा के पीछे
             सिर्फ तुम्हारा स्वार्थ है 
             मेरी इच्छा नहीं .
             अगर मेरी इच्छा जाननी है
             तो सुनो 
             मैं वो भारत बनना चाहता हूँ 
             जो सोने की चिड़िया था कभी  
             मैं वो भारत बनना चाहता हूँ 
             जहाँ हिन्दू-मुस्लमान नहीं
             इंसान रहते हों 
             मैं वो भारत बनना चाहता हूँ 
             जहाँ प्यार पूजा हो 
             जहाँ इंसानियत धर्म हो 
             क्या ऐसा भारत बनने दोगे मुझे ?
             मैं पूछ रहा हूँ तुमसे 
             इस भारत के जन-जन से 
             जवाब दो मुझे 
             मैं भारत हूँ 
             वो भारत 
             जिसे खंड-खंड कर डाला है 
             तुम लोगों ने .

                      ***** 

11 टिप्‍पणियां:

ZEAL ने कहा…

.

जहाँ हिन्दू-मुस्लमान नहीं
इंसान रहते हों
मैं वो भारत बनना चाहता हूँ
जहाँ प्यार पूजा हो
जहाँ इंसानियत धर्म हो ....

इस बेहतरीन सशक्त रचना की जितनी भी तारीफ की जाए , कम होगी ।
निश्चय ही एक दिन ये भारत , हमारे और आपके सपनों का भारत होगा ।

जय हिंद !

.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.....
---------
हिन्‍दी के सर्वाधिक पढ़े जाने वाले ब्‍लॉग।

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मैं पूछ रहा हूँ तुमसे
इस भारत के जन-जन से
जवाब दो मुझे
मैं भारत हूँ
वो भारत
जिसे खंड-खंड कर डाला है
तुम लोगों ने ....

दिलबाग जी इसका जवाब तो वो देगें ...
जिनका पैसा विदेशी बैंकों में जमा है ....

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|

केवल राम ने कहा…

जहाँ प्यार पूजा हो
जहाँ इंसानियत धर्म हो

अगर ऐसा हो जाए तो क्या कहने ..दुनिया में कहीं है फिर ऐसा देश ...आपकी सोच सही और सुंदर तरीके से अभिव्यक्त हुई है इस कविता में ...आपका आभार ...

केवल राम ने कहा…

कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो NO करें ..सेव करें ..बस हो गया .

Jaswant Gharu ने कहा…

ati sunder , sachmuch bhart esa hi desh hona chahie jhan hindu - muslman nhin insan rahne chahie

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं...वाकई.... आशा हैं आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा....!!
लिखती 

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत शानदार भावाभिव्यक्ति आम जनता के दिल की बात

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-01-2020) को   "मैं भारत हूँ"   (चर्चा अंक - 3581)    पर भी होगी। 
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
 --
मकर संक्रान्ति की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

बहुत सुन्दर दिलबाग सिंग विर्क जी !
आओ मिलकर भारत जोड़ें !
अगर तोड़ना ही है कुछ तो, नफ़रत की दीवारें तोड़ें !

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