हौवा कौवा नहीं होता
जिसे उड़ा दिया जाए
हुर्र कहकर ।
हौवा तो वामन है
जो कद बढ़ा लेता है अपना
हर कदम के साथ ।
हौवा तो अमीबा है
जितना तोड़ोगे इसे
इसकी गिनती बढेगी उतनी ही ।
हौवा पैदा करना कोई हौवा नहीं
बस एक अफवाह फैलानी है
तिल का ताड़ बन जाएगा खुद ही ।
हौवा पैदा करना जरूरत है आज की
क्योंकि इसी के बल पर सिकेंगी रोटियाँ
राजनैतिक रोटियाँ
सामाजिक रोटियाँ
आर्थिक रोटियाँ
धार्मिक रोटियाँ
और इन रोटियों को पकाने में
गलेगी देह उनकी
रोटी जिनके लिए खुद एक हौवा है ।
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5 टिप्पणियां:
बहुत खूब !
बहुत सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति...
हव्वा कौआ नहीं होता..जिसे उड़ा दिया जाये..
बेहद रोचक और मजेदार..
'और इन रोटियों को पकाने में
गलेगी देह उनकी
रोटी जिनके लिए खुद एक हौवा है ।'
शानदार कृति.... :)
सुंदर अभिव्यक्ति
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