दूर
हो गए हम,
कैसी
हवा चली थी |
एक
मोड़ पर आकर हाथ छूट गया
भरी
दोपहर में फिर शाम ढली थी |
महफिल
में आया जब भी नाम तेरा
सीने
में तब एक कसक उठी थी |
हर
बीता दिन गहरे जख्म दे गया
दम
तोडती रही जो आस बची थी |
दिन
तो अब भी कट रहे हैं किसी तरह
जो
तेरे साथ बीती जिन्दगी वही
थी |
बस
यही सोचकर खुश हो रहे हैं हम
जुदा
होकर '
विर्क
'
मिली
तुझे ख़ुशी थी |
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4 टिप्पणियां:
दिन तो अब भी कट रहे हैं किसी तरह
जो तेरे साथ बीती जिन्दगी वही थी |
...वाह...लाज़वाब ग़ज़ल..
वाह वाह ....बहुत खूब
Bahut khoob gajal
bahut achha likha hai
shubhkamnayen
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