तेरी
याद छुपाकर सीने में
मजा
आने लगा है जीने में |
मैकदे
की तरफ भेजा जिसने
बुराई
दिखती उसे पीने में |
हवाओं
का रुख देखा न था
अब
कसूर निकालो सफीने में |
रुतें
बदलती हैं दिल को देखकर
आग
लगे सावन के महीने में |
उतारकर
सब नग,
मुहब्बत
पहनो
देखो
दम कितना इस नगीने में |
जीने
लायक सब कुछ है यहाँ पर
क्या
ढूँढ रहे '
विर्क
'
दफीने
में |
3 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा ग़ज़ल।
इस पोस्ट का लिंक कल बुधवार 30-04-2014 को चर्चामंच पर भी लगाया गया है।
उतारकर सब नग, मुहब्बत पहनो
देखो दम कितना इस नगीने में |
bahut khoob kaha hai
shubhkamnayen
वाह बहुत खूब जी
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