दिल में तूफ़ान उठा जो, टाला न गया
टूट गया मैं, खुद को संभाला न गया |
तू चुपके से आया था मेरे दिल में
दिल से तुझको ताउम्र निकाला न गया |
सोच न पाया, नुक्सान-नफे की बातें
जग के साँचे में खुद को ढाला न गया |
आँसू पी लेना ठीक लगा था मुझको
महफिल में तेरा नाम उछाला न गया |
मेरे सिर चढ़कर बोले जादू तेरा
बातों में तेरा यार हवाला न गया |
यूँ तो हर ओर अँधेरा है गम का पर
तेरी यादों का ' विर्क ' उजाला न गया |
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3 टिप्पणियां:
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..सभी अशआर बहुत उम्दा और दिल को छूते हुए...
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (13-04-2014) को ''जागरूक हैं, फिर इतना ज़ुल्म क्यों ?'' (चर्चा मंच-1581) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…
वाह !
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