मंगलवार, जुलाई 16, 2013

पर्दा नहीं बना

यहाँ मिल जाएँगे हजारों स्थान तुम्हें छुपने के लिए
मगर कोई पर्दा नहीं बना गुनाहों को ढकने के लिए ।

कौन गिरता नहीं यहाँ, गिरकर उठना होता है मगर
बड़ी हिम्मत चाहिए खुद में, गिरकर उठने के लिए ।

मंदिर में सिर झुकाकर किसलिए इतना इतरा रहे हो
पहले खुद को मिटाना जरूरी होता है झुकने के लिए ।

तुझ पर ऐतबार न करना मुहब्बत की तौहीन होगी
मुझे पता है ये, तुम वादा करते हो मुकरने के लिए ।

कोई कल चला, कोई आज चला, किसी की बारी कल है
रहो तैयार ' विर्क ' कौन आया है यहाँ रुकने के लिए ।

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2 टिप्‍पणियां:

अनुपमा पाठक ने कहा…

'कौन आया है यहाँ रुकने के लिए ।'

so true!

अभिमन्‍यु भारद्वाज ने कहा…

बहुत सुन्‍दर रचना आभार
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