दिल करे लोभ, दुनिया लुभाती रही
हम फँसे जाल में, ये फँसाती रही |
इस चमन में जहाँ गूँज मातम रहा
देख बुलबुल वहीँ गीत गाती रही |
खून है वो जिगर का, न शबनम कहो
तोडना चाहती है मेरा हौंसला
रोक पाई नहीं मंजिलें भी मुझे
नित नई राह मुझको बुलाती रही |
मैं बड़े गौर से सुन रहा हूँ इसे
जिन्दगी ' विर्क ' सुख-दुख सुनाती रही |
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4 टिप्पणियां:
बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति जनाब.. खासकर निम्न पंक्तियाँ -
खून है वो जिगर का, न शबनम कहो
रात भर, रात आँसू बहाती रही |
अति सुंदर.
क्या बात है। लाजवाब रचना।
सुन्दर ग़ज़ल
तोडना चाहती है मेरा हौंसला
रोज़ किस्मत मुझे आजमाती रही
बहुत खूब...
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