शुक्रवार, अप्रैल 04, 2014

रात आँसू बहाती रही

दिल करे लोभ, दुनिया लुभाती रही 
हम फँसे जाल में, ये फँसाती रही |

इस चमन में जहाँ गूँज मातम रहा 
देख बुलबुल वहीँ गीत गाती रही |

खून है वो जिगर का, न शबनम कहो 

तोडना चाहती है मेरा हौंसला 

रोक पाई नहीं मंजिलें भी मुझे 
नित नई राह मुझको बुलाती रही |

मैं बड़े गौर से सुन रहा हूँ इसे 
जिन्दगी ' विर्क ' सुख-दुख सुनाती रही |
*********

4 टिप्‍पणियां:

Madabhushi Rangraj Iyengar ने कहा…



बहुत ही बढ़िया प्रस्तुति जनाब.. खासकर निम्न पंक्तियाँ -

खून है वो जिगर का, न शबनम कहो
रात भर, रात आँसू बहाती रही |


अति सुंदर.

Mithilesh dubey ने कहा…

क्या बात है। लाजवाब रचना।

Onkar ने कहा…

सुन्दर ग़ज़ल

Vaanbhatt ने कहा…

तोडना चाहती है मेरा हौंसला
रोज़ किस्मत मुझे आजमाती रही

बहुत खूब...

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