ग़म का अज़ीज़, ख़ुशी से बेगाना कर गई
तेरी चाहत हमें इस क़द्र दीवाना कर गई।
न दिल को तसल्ली दे सके, न गिला कर सके
तेरी ही तरह बहार भी, मुझसे बहाना कर गई।
चाहकर भी आज़ाद हो न पाएँगे उसके असर से
बीती ज़िंदगी नाम मेरे, एक फ़साना कर गई।
टुकड़े-टुकड़े हुआ दिल, रोए हम लहू के आँसू
तेरी याद ये वारदात वहशियाना कर गई।
मेरी वफ़ा ने देखो, किया है ये कैसा सलूक
आफ़तों की शाख पर मेरा आशियाना कर गई।
मुहब्बत की ख़ुशबू ऐसी फैली है ज़िंदगी में
अंदाज़ मेरा ‘विर्क’ ये शायराना कर गई।
दिलबागसिंह विर्क
******